Ganesh Chaturthi: आस्था और अरबों का कारोबार!
सोचिए, एक त्यौहार जो सिर्फ आस्था ही नहीं बल्कि करोड़ों-अरबों का कारोबार भी बन जाए। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं Ganesh Chaturthi की, जिसे भारत के हर कोने में धूमधाम से मनाया जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार के पीछे कितनी बड़ी इकोनॉमी खड़ी है?
भावनाओं से जुड़ा सबसे बड़ा उत्सव
Ganesh Chaturthi सिर्फ पूजा-पाठ नहीं है, ये लोगों के दिलों की आस्था का प्रतीक है। लाखों लोग 10 दिनों तक गणपति बप्पा की मूर्ति घर और पंडालों में स्थापित करते हैं।
इस दौरान हर गली-मोहल्ला एक मिनी मार्केट में बदल जाता है।
करोड़ों की मूर्तियों का कारोबार
हर साल सिर्फ महाराष्ट्र में ही लगभग 35 से 40 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इसमें गणपति मूर्तियाँ, सजावट, लाइटिंग, फूल, मिठाइयाँ और पूजा सामग्री शामिल है।
देशभर में देखें तो ये आंकड़ा 60 से 70 हजार करोड़ रुपये तक पहुँच जाता है।
मूर्तिकारों की सालभर की मेहनत
एक मूर्तिकार सालभर गणपति बप्पा की मूर्तियाँ बनाने में जुटा रहता है। छोटी मूर्तियाँ 500 रुपये से शुरू होकर बड़ी-बड़ी पंडाल मूर्तियाँ 5 लाख रुपये तक बिकती हैं।
मुंबई, पुणे, नागपुर जैसे शहरों में लाखों मूर्तियाँ बेची जाती हैं।
सजावट और लाइटिंग का धंधा
गणपति पंडालों की खूबसूरती देखने लायक होती है। हर साल हजारों रुपये से लेकर करोड़ों तक का बजट सजावट पर खर्च किया जाता है।
डेकोरेशन कंपनियों और लाइटिंग वालों के लिए यह त्यौहार सबसे ज्यादा कमाई का सीजन बन जाता है।
मिठाई बाजार की चमक
Modak के बिना Ganesh Chaturthi अधूरी है। महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर भारत के बाजारों में इस दौरान मिठाइयों की सेल दोगुनी हो जाती है।
सिर्फ मिठाई उद्योग ही 10 से 15 हजार करोड़ रुपये का कारोबार कर लेता है।
टेंट और पंडाल का धंधा
छोटे मोहल्लों से लेकर बड़े मंडलों तक हर जगह पंडाल सजते हैं। इसके लिए टेंट, साउंड सिस्टम, कुर्सी, और कारपेट रेंटल वालों की भारी डिमांड होती है।
ये कारोबार अकेले 5 से 7 हजार करोड़ रुपये तक पहुँच जाता है।
रोजगार का बड़ा मौका
त्योहारों का सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये अस्थायी रोजगार भी पैदा करते हैं।
Ganesh Chaturthi के दौरान लाखों लोगों को नौकरी मिलती है – चाहे वो मूर्ति बेचने वाले हों, मिठाई बनाने वाले, डेकोरेशन करने वाले या फिर डिलीवरी बॉय।
टूरिज्म और ट्रैवल इंडस्ट्री
मुंबई का लालबागचा राजा या पुणे का दगडूशेठ गणपति देखने हर साल लाखों लोग आते हैं।
इससे होटल, ट्रांसपोर्ट और ट्रैवल कंपनियों की कमाई कई गुना बढ़ जाती है।
ईको-फ्रेंडली मूर्तियों का नया बाजार
प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों से पर्यावरण को नुकसान होता है। इसलिए अब लोग ईको-फ्रेंडली मूर्तियाँ खरीदने लगे हैं।
ये मूर्तियाँ मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती हैं और इनकी डिमांड हर साल 20% से ज्यादा बढ़ रही है।
डिजिटल पूजा और ऑनलाइन ऑर्डर
कोविड के बाद से ऑनलाइन पूजा सामग्री, मूर्तियाँ और प्रसाद की डिमांड भी बढ़ी है।
Amazon और Flipkart जैसे प्लेटफॉर्म पर भी Ganesh Chaturthi kits बिकने लगे हैं।
मीडिया और ब्रांडिंग का खेल
गणपति पंडालों में बड़े-बड़े ब्रांड्स स्पॉन्सरशिप करते हैं। लाखों-करोड़ों लोग पंडालों में आते हैं, जिससे कंपनियों को अपनी ब्रांडिंग का मौका मिलता है।
ये भी त्योहार की इकोनॉमी का अहम हिस्सा है।
छोटे व्यापारियों की बड़ी उम्मीद
छोटे दुकानदारों के लिए ये 10 दिन सोने पर सुहागा होते हैं। फूल वाले, मिठाई वाले, टेंट वाले, यहां तक कि बच्चों के खिलौने बेचने वाले भी खूब कमाते हैं।
त्योहार उनके सालभर की कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा लाता है।
विदेशों में भी बाजार
क्या आप जानते हैं? Ganesh Chaturthi अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका, दुबई, यूके और ऑस्ट्रेलिया में भी भारतीय समुदाय धूमधाम से इसे मनाता है।
इससे एक्सपोर्ट कारोबार भी हजारों करोड़ तक पहुँच गया है।
त्योहार की असली ताकत
- आस्था और परंपरा के साथ-साथ यह त्योहार भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है।
- लाखों लोगों के लिए Ganesh Chaturthi सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि जीविका का साधन भी है।
निष्कर्ष
Ganesh Chaturthi एक ऐसा त्यौहार है जो भावनाओं को जोड़ता है और अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। आस्था के साथ-साथ यह छोटे-बड़े सभी व्यापारियों के लिए सुनहरा अवसर बन चुका है।
अब सवाल आपसे – क्या आपको लगता है कि त्योहार सिर्फ भक्ति तक सीमित रहने चाहिए या फिर उनका कारोबार बढ़ना भी जरूरी है? आपकी क्या राय है?
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